मुंबई अंडरवर्ल्ड की दुनिया में एक नाम जिसने अपनी अलग पहचान बनाई, वह है अरुण गवली। कभी एक साधारण दूध बेचने वाले लड़के ने किस तरह से गलियों से उठकर अंडरवर्ल्ड का सबसे बड़ा नाम बनाया और फिर राजनीति की कुर्सी तक पहुँच गया, यह कहानी मनोरंजन और इतिहास दोनों का संगम है।
जन्म और शुरुआती जीवन
अरुण गवली का जन्म 17 जुलाई 1955 को महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के कोपरगांव में हुआ। उनके पिता गुलाबराव और माता लक्ष्मीबाई के परिवार ने बेहतर रोजगार की तलाश में मुंबई का रुख किया। बचपन में ही अरुण को पढ़ाई छोड़कर घर-घर दूध बेचने का काम करना पड़ा। इस काम ने उन्हें मुंबई की गलियों और स्थानीय लोगों के करीब ला दिया, जो आगे चलकर उनके लिए सबसे बड़ी ताकत बन गई।
अंडरवर्ल्ड की दुनिया में कदम
कॉटन मिल्स के बंद होने और बेरोजगारी के कारण अरुण गवली ने विभिन्न कंपनियों में काम किया, जैसे Shakti Mills, Godereh Boyce और Crompton Greaves। इसी दौरान उनकी मुलाकात सदाशिव पावले उर्फ सदा मामा से हुई, जिन्होंने अरुण को अंडरवर्ल्ड की दुनिया में प्रवेश कराया। अरुण ने अपने स्कूल के दोस्त रमा नाइक और गैंगस्टर बाबू रेशम के साथ मिलकर B.R.A गैंग बनाई। इस गैंग ने परेल से लेकर बाइकुल्ला तक अपनी दादागीरी कायम कर दी। लोकल मराठी नौजवानों का समर्थन पाकर गवली ने मोहन सरमलकर की गैंग को खुली चुनौती दी और भैया गैंग के खिलाफ मोर्चा खोला।
लोकल हीरो से अंडरवर्ल्ड डॉन
भैया गैंग के खिलाफ लड़ाई में गवली ने लोगों का दिल जीत लिया। यही वजह थी कि मुंबई की गलियों में उनका नाम “डैडी” के तौर पर फैल गया। धीरे-धीरे उनकी गैंग और उनकी हिफाजत के कारण शहर की गलियों में उनका खौफ़ बढ़ता गया।
दाउद इब्राहिम से दोस्ती और फिर दुश्मनी
पठान गैंग के खिलाफ कार्रवाई के दौरान अरुण गवली ने दाउद इब्राहिम से गठजोड़ किया। उनकी मदद से पठान गैंग के सरगना समद खान और भाई अब्दुल रहीम खान को मार गिराया गया। बाद में रियल एस्टेट में भी गवली ने अपने कदम जमाए, और कॉन्ट्रैक्टर दोस्तों को प्रोटेक्शन देकर मुनाफा कमाया। लेकिन 1988 में जोगेश्वरी की जमीन के विवाद ने गवली और दाउद के बीच दुश्मनी पैदा कर दी। इसके बाद मुंबई में शुरू हुई गैंगवार ने शहर को खून से रंग दिया। इस दौरान गवली के भाई किशोर की हत्या भी हुई। अरुण गवली ने बदले में दाउद के जीजा इब्राहिम पारकर को मार डाला।
1993 के ब्लास्ट और अंडरवर्ल्ड का नया नक्शा
12 मार्च 1993 को मुंबई में हुए सीरियल ब्लास्ट ने अंडरवर्ल्ड की दिशा बदल दी। इन धमाकों में 257 लोग मरे और 1400 से अधिक घायल हुए। इस हादसे के बाद डी कंपनी में दरारें पड़ गई और कई डॉन मुंबई छोड़कर भाग गए। लेकिन अरुण गवली ने शहर में अपनी पकड़ मजबूत रखी।
राजनीति में कदम
मुंबई की गलियों में डॉन के रूप में पहचाने जाने के बाद गवली ने राजनीति की ओर रुख किया। उन्होंने अपने लोकल और अंडरवर्ल्ड अनुभव का इस्तेमाल करते हुए समाज में अपनी जगह बनाई। अरुण गवली का जीवन दिखाता है कि कैसे एक आम लड़का, परिस्थिति और अपने कौशल से, अंडरवर्ल्ड का डैडी और फिर राजनीतिक हस्ती बन सकता है। अरुण गवली की कहानी न केवल अंडरवर्ल्ड की हलचल दिखाती है बल्कि मुंबई की सामाजिक और राजनीतिक परतों को भी उजागर करती है।
