बदरीनाथ धाम में लागू किए जा रहे मास्टर प्लान को लेकर विवाद एक बार फिर गरमा गया है। स्थानीय तीर्थ-पुरोहितों और हक-हकूकधारियों की महापंचायत ने प्रदेश सरकार पर तानाशाही रवैया अपनाने और उनके अधिकारों की अनदेखी करने का आरोप लगाया है।
मास्टर प्लान पर तीव्र विवाद
बीते रविवार को हरिद्वार रोड स्थित भगवान आश्रम में हक-हकूकधारी महापंचायत की बैठक हुई। महापंचायत के अध्यक्ष कृष्णकांत कोठियाल ने कहा कि सरकार मास्टर प्लान के बहाने धार्मिक और पौराणिक स्वरूप में बदलाव कर रही है और स्थानीय व्यापारियों तथा हक-हकूकधारियों के अधिकारों की अनदेखी कर रही है।उन्होंने चेतावनी दी कि यदि स्थानीय मांगों पर तुरंत ध्यान नहीं दिया गया, तो महापंचायत बड़े पैमाने पर आंदोलन के लिए मजबूर होगी। बैठक में शामिल सभी पुरोहितों और प्रतिनिधियों ने सरकार को स्पष्ट संदेश दिया कि बदरीनाथ धाम का पारंपरिक स्वरूप और स्थानीय आजीविका की सुरक्षा प्राथमिकता होनी चाहिए।
संवेदनशील क्षेत्र में विकास
विशेषज्ञों का मानना है कि बदरीनाथ धाम भौगोलिक दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील क्षेत्र है। 1976 में उत्तरप्रदेश शासन द्वारा गठित एन.डी. तिवारी कमेटी ने भी रिपोर्ट में कहा था कि यह क्षेत्र एक टापू पर स्थित है और यहां किसी भी तरह का छेड़छाड़ प्राकृतिक आपदाओं का जोखिम बढ़ा सकता है।
मास्टर प्लान की योजना
बदरीनाथ धाम मास्टर प्लान लगभग ₹424 करोड़ की परियोजना है, जिसका उद्देश्य धाम को स्मार्ट आध्यात्मिक हिल टाउन के रूप में विकसित करना है। योजना में शामिल हैं:
- Arrival Plaza
- पार्किंग व्यवस्था
- संग्रहालय और आर्ट गैलरी
- घाट और सड़क नेटवर्क
- पेयजल और स्वच्छता व्यवस्था
सरकार का कहना है कि योजना 2025–26 तक पूरी होगी और तीर्थयात्रियों को बेहतर सुविधाएँ उपलब्ध कराएगी, जबकि धाम की पौराणिक गरिमा भी बनी रहेगी।
स्थानीय समाज की चिंता
हालांकि तीर्थ-पुरोहितों और स्थानीय लोगों का कहना है कि मास्टर प्लान में पारंपरिक स्वरूप और स्थानीय हितों की अनदेखी की जा रही है। उनका कहना है कि विकास के नाम पर परंपराएं और स्थानीय आजीविका नष्ट हो सकती हैं, जिससे यह क्षेत्र स्थानीय समाज के लिए गंभीर संकट बन सकता है। महापंचायत के अध्यक्ष कृष्णकांत कोठियाल और अन्य प्रतिनिधियों ने कहा कि वे सरकार से शीघ्र ठोस कदम उठाने की उम्मीद रखते हैं, ताकि धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक हितों की रक्षा सुनिश्चित हो सके।