सुप्रीम कोर्ट से सोमवार को झारखंड के एक मंत्री को करारा झटका लगा। कोर्ट ने मंत्री इरफान अंसारी की उस याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें उनकी ओर से कथित तौर पर एक नाबालिग दुष्कर्म पीड़िता की पहचान उजागर करने के बाद शुरू किए गए आपराधिक मुकदमे को रद्द करने की मांग की थी। न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने मंत्री इरफान अंसारी के व्यवहार की आलोचना की।
पीठ ने कहा कि आप हर चीज के लिए प्रचार चाहते हैं? यह केवल प्रचार के लिए था। कानून के तहत अनिवार्य जरूरतों का पालन नहीं किया गया। राजनेता अस्पताल में जीवित बचे व्यक्ति से मिलने के लिए या तो अकेले जा सकते थे या अपने साथ एक व्यक्ति को ले जा सकते थे। समर्थकों के साथ जाने की कोई जरूरत नहीं थी। यह केवल प्रचार के लिए था
झारखंड हाईकोर्ट के फैसले को दी थी चुनौती
इस बीच अदालत के मिजाज को भांपते हुए अंसारी के वकील ने याचिका वापस लेने की इजाजत मांगी और कोर्ट ने उन्हें इसकी इजाजत दे भी दी। अंसारी ने झारखंड हाईकोर्ट के छह सितंबर, 2024 के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें उसने भारतीय दंड संहिता और यौन अपराध से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के प्रावधानों के तहत आरोप तय करने के दुमका कोर्ट के 21 नवंबर, 2022 को दिए गए आदेश को रद्द करने से इनकार कर दिया था।
क्या है मामला?
जामताड़ा विधायक और उनके समर्थकों ने 28 अक्तूबर, 2018 को पीड़िता और उसके परिवार के साथ एकजुटता दिखाने के लिए एक अस्पताल का दौरा किया था। इस दौरान उन्होंने कथित तौर पर उसका नाम, पता और तस्वीरें मीडिया के साथ साझा की थीं।