मंगलौर सीट के उप चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी काज़ी निज़ामुद्दीन के पक्ष में नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य की भागीदारी महत्वपूर्ण साबित हो रही है । यशपाल आर्य ने क्षेत्र के निजामपुर और नसीरपुर में जन सभाओं में शामिल हुए उनकी मौजूदगी में इन दलित बहुल गांवों में दर्जनों लोगों ने कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की। बेशक इस मामले में पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष प्रतिनिधि डा शमशाद और पूर्व जिला पंचायत सदस्य डा सोमपाल बावरा ने निर्णायक भूमिका निभाई, लेकिन इसका क्रेडिट या तो यशपाल आर्य के नाम दर्ज हो रहा है या फिर उस राजनीति के जो लोकसभा चुनाव में परवान चढ़ी थी।
मंगलौर सीट पर 2022 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी काज़ी निजामुद्दीन को बसपा के हाजी सरवत करीम अंसारी के मुकाबले करीब छह सौ वोटों से हारी थी।
दूसरा यह कि लोक सभा चुनाव के मद्दे नजर कांग्रेस की अगुवाई में विपक्ष की ए क ता परवान चढ़ी थी। इसके नतीजो संपन्न लोक सभा चुनाव में, खासतौर पर मंगलौर विधानसभा
क्षेत्र में दिखाई दिए थे, जहां कांग्रेस का समर्थन एकाएक बढ़कर 44 हजार हो गया था और बसपा का समर्थन
था। को मजबूत होते नहीं देखना चाहता लाभ कांग्रेस उठाना करीम
दो बड़े बदलाव हुए थे। एक, डेढ़ घटकर साढ़े 5 हजार रह गया हालांकि लोकसभा चुनाव में भाजपा था। जाहिर है इस का समर्थन भी 18 हजार से बढ़कर 21 हजार हो गया था। लेकिन दलितों का रुझान जितना बसपा के खिलाफ हुआ ही इसलिए था
कि दलित वोट की बसपा की ओर वापसी किसी सूरत में न हो सके। इसी कारण एक ओर काज़ी निजामुद्दीन बसपा को भाजपा की बी टीम बता रहे हैं, दूसरी ओर झबरेड़ा (सु.) क्षेत्र के विधायक वीरेंद्र जाती पहले से ही काज़ी निज़ामुद्दीन के हनुमान बने हुए हैं। ऐसे में नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य उनकी नई ताकत के रूप में उभरे हैं। हालांकि विगत दिवस पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत भी मंगलौर क्षेत्र में पहुंचे थे और वे सब्जी समोसे बेचकर, प्रेस को बयान देकर वापिस चले गए। उनके दौरे से काज़ी निजामुद्दीन को राहत कम मिली होगी और वे चौकन्ने ज्यादा हुए होंगे। कारण हरीश रावत और उनके बीच की रस्साकशी है। स्थिति यह है कि नगर में हरीश रावत का सबसे खास चेहरा माने जाने वाले सैय्यद अली हैदर जैदी लोकसभा चुनाव में तो कांग्रेस के साथ थे और अब उप चुनाव में बसपा प्रत्याशी ओबेदुर्रहमान को चुनाव लड़ा रहे हैं। ऐसे में हरीश रावत की बात तो जहां तक है, ठीक है लेकिन यशपाल आर्य काज़ी निजामुद्दीन के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं। वैसे भी आर्य धीर गंभीर नेता हैं और पार्टी गुटबाजी को ज्यादा तरजीह नहीं देते। यही कारण है कि उन्हें सीधे सोनिया गांधी का अभयदान प्राप्त है