2003 से अटका सड़क का प्रस्ताव, आज भी मजबूरी में उठाना पड़ रहा है शव

उत्तराखंड के सीमांत क्षेत्रों से फिर एक ऐसी घटना सामने आई है, जिसने पहाड़ की कठिनाइयों और उपेक्षा की दर्दनाक तस्वीर को उजागर कर दिया है। सड़क न होने की मजबूरी इस कदर भारी पड़ी कि ग्रामीणों को एक बुजुर्ग का शव 12 किलोमीटर तक कंधों पर ढोकर गांव तक ले जाना पड़ा।

अस्पताल से घर लौटते वक्त थमी सांसें

जानकारी के मुताबिक, खटगिरी तोक निवासी 65 वर्षीय संतोष सिंह कई दिनों से बीमार थे। उनका इलाज जिला अस्पताल में चल रहा था। हालत में सुधार न होने पर सोमवार को परिजन उन्हें घर वापस ले जा रहे थे, लेकिन रास्ते में ही उनकी सांसे थम गईं।

शव यात्रा बनी संघर्ष का प्रतीक

करीब 30 किमी का सफर वाहन से तय करने के बाद आगे का रास्ता न होने से शव को कंधों पर उठाना पड़ा। बारिश और फिसलन भरी पगडंडियों के बीच ग्रामीणों, खासकर युवाओं ने चार घंटे की कड़ी मशक्कत कर शव को गांव तक पहुंचाया। यह दृश्य हर किसी की आंखें नम कर गया।

सड़क का इंतजार अब भी जारी

ग्रामीणों का कहना है कि सड़क न होने से बीमारों को अस्पताल पहुंचाना, गर्भवती महिलाओं को सुरक्षित प्रसव कराना और अब मृतकों को गांव तक लाना बेहद मुश्किल हो गया है। इस क्षेत्र में सड़क का प्रस्ताव साल 2003 से लंबित है। हालांकि हाल ही में पीएम ग्राम सड़क योजना के तहत दोबारा सर्वे शुरू किया गया है, लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि यह वादा कब हकीकत बनेगा, कहना मुश्किल है।

मानवता की मिसाल बने ग्रामीण

गांव के युवाओं ने मिलकर बुजुर्ग के शव को कंधों पर उठाकर अंतिम यात्रा पूरी की। यह नजारा सिर्फ संवेदनाओं को ही नहीं झकझोरता बल्कि इस क्षेत्र में सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं की सच्चाई को भी उजागर करता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *