हरिद्वार में रहस्यमयी पशु बीमारी का अलर्ट, पशु चिकित्सक की अनुपस्थिति से नाराजगी

हरिद्वार जिले के नारसन ब्लॉक के घोसीपुरा गांव में इन दिनों एक रहस्यमयी बीमारी ने कहर बरपा रखा है। गांव में करीब 50 पशु इस बीमारी की चपेट में आ गए हैं, जिनमें से अब तक चार पशु दम तोड़ चुके हैं। मरे हुए पशुओं की कीमत लाखों में बताई जा रही है, जिससे ग्रामीणों पर आर्थिक संकट का खतरा मंडराने लगा है। ग्रामीणों ने बताया कि जिन पशुओं की मौत हुई है, वे मुख्यतः दूध देने वाली दुधारू गाय और भैंसें थीं। ऐसे में न केवल ग्रामीणों की आमदनी पर बड़ा असर पड़ा है, बल्कि उनके जीवन यापन पर भी गंभीर दबाव पड़ गया है। “हमारे लिए यह समय बेहद कठिन है। हमारी गायें और भैंसें ही हमारी आमदनी का मुख्य स्रोत हैं। अचानक उनकी मौत ने हमें गहरे आर्थिक संकट में डाल दिया है। अगर बीमारी पर समय रहते नियंत्रण नहीं हुआ, तो और भी कई पशु प्रभावित हो सकते हैं,” गांव के एक पशुपालक ने दुख जाहिर किया।

ग्रामीणों में भय का माहौल

घोसीपुरा गांव में रहस्यमयी बीमारी के फैलने के बाद ग्रामीणों में डर और चिंता का माहौल है। लोग अपनी बची हुई गायों और भैंसों को भी सुरक्षित रखने के लिए तरह-तरह के उपाय कर रहे हैं, लेकिन बीमारी की वास्तविक वजह और उपचार को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है। “हमारे पास इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है। हमारे पशु मर रहे हैं और हम helpless महसूस कर रहे हैं। हर कोई डर रहा है कि अगली बार उसके पशु भी इसकी चपेट में आ सकते हैं,” एक ग्रामीण ने बताया।

पशु चिकित्सक की अनुपस्थिति से नाराजगी

घोसीपुरा गांव के लोगों ने मामले की जानकारी कई बार ग्राम प्रधान को दी। प्रधान ने भी गंभीर स्थिति को देखते हुए क्षेत्रीय पशु चिकित्सक मनोज कुमार को मौके पर बुलाने का प्रयास किया। लेकिन ग्रामीणों के अनुसार, बार-बार शिकायत और सूचना देने के बावजूद पशु चिकित्सक मौके पर नहीं पहुंचे। ग्रामीणों का कहना है, “हमारा पेट इस बीमारी के डर और आर्थिक नुकसान से दुख रहा है। अगर समय पर इलाज नहीं हुआ, तो हमारे लिए नुकसान और भी बढ़ सकता है। सरकार और पशु चिकित्सक हमारी मदद करें।”

प्रशासन की भूमिका

हालांकि स्थानीय प्रशासन ने मामले की गंभीरता को देखते हुए गांव के हालात पर नजर रखने की बात कही है, लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि समय पर उचित कदम उठाए जाने की आवश्यकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि पशुओं में फैल रही बीमारी का तुरंत निदान और वैक्सीनेशन, साथ ही प्रभावित पशुओं का अलग करना, संक्रमण रोकने के लिए बेहद जरूरी है। घोसीपुरा गांव की कहानी केवल एक बीमारी तक सीमित नहीं है। यह ग्रामीणों की आजीविका, उनके संघर्ष और पशुपालन पर पड़ने वाले गंभीर प्रभाव की ओर इशारा करती है। इस समय तत्काल कदम उठाकर न केवल बीमारी को फैलने से रोका जा सकता है, बल्कि ग्रामीणों के आर्थिक और मानसिक तनाव को भी कम किया जा सकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *