पंजाब:लुधियाना पश्चिम विधानसभा क्षेत्र में हाल ही में संपन्न हुए उपचुनाव में शिरोमणि अकाली दल (शिअद) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को करारी शिकस्त मिलने के बाद दोनों दलों के बीच पुराने गठबंधन को लेकर चर्चा एक बार फिर तेज हो गई है।
पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि यदि दोनों दलों ने मिलकर चुनाव लड़ा होता, तो चुनावी नतीजे काफी हद तक अलग हो सकते थे। गठबंधन टूटने के बाद से दोनों ही पार्टियां पंजाब की राजनीति में कमजोर स्थिति में नजर आ रही हैं। उपचुनाव में भाजपा तीसरे और शिअद चौथे स्थान पर रही, जिससे यह साफ हो गया है कि अलग-अलग चुनाव लड़ना दोनों दलों के लिए नुकसानदेह साबित हो रहा है।
शिअद ने 2020 में कृषि कानूनों के विरोध में भाजपा से गठबंधन तोड़ दिया था, जिसके बाद से दोनों पार्टियों ने विधानसभा और लोकसभा चुनाव अलग-अलग लड़े। जहां कभी शिअद ने पंजाब में आठ बार सरकार बनाई थी, वहीं 2022 के विधानसभा चुनाव में उसे केवल तीन सीटें मिलीं। 2024 के लोकसभा चुनाव में पार्टी सिर्फ एक सीट पर सिमट गई। दूसरी ओर, भाजपा को विधानसभा में दो सीटें मिलीं, जबकि लोकसभा चुनाव में उसे कोई सफलता नहीं मिली।
2022 से 2025 तक पंजाब में हुए छह उपचुनावों में शिअद ने केवल दो में अपने उम्मीदवार उतारे—जालंधर पश्चिम और लुधियाना पश्चिम—और दोनों में हार का सामना करना पड़ा।
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “पांच बार के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल हमेशा अकाली-भाजपा गठबंधन को ‘नाखून-मांस’ का रिश्ता कहते थे। आज फिर से उस एकता की जरूरत है, क्योंकि पंजाब में कई ताकतें सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश कर रही हैं।”
वहीं, शिअद के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “लुधियाना उपचुनाव इसका स्पष्ट उदाहरण है। भाजपा और शिअद को मिलाकर 28,526 वोट मिले, जबकि आम आदमी पार्टी को 35,179 वोट। अगर हम साथ होते, तो जीत तय मानी जा सकती थी।”
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ भी लगातार ‘पंथक एकता’ के जरिये पार्टी हाईकमान को इस गठबंधन की जरूरत का संदेश दे रहे हैं।