भारत और अमेरिका के बीच ट्रेड वॉर का मुद्दा लगातार सुर्खियों में बना हुआ है। दोनों देशों के बीच व्यापारिक तनाव का सबसे बड़ा कारण अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर लगाए गए भारी टैरिफ हैं। अब इस मसले को सुलझाने और द्विपक्षीय व्यापार सुधार की दिशा में कदम बढ़ाने के लिए आज नई दिल्ली में हाई-लेवल मीटिंग होने जा रही है। इस मीटिंग में अमेरिका की ओर से ट्रंप के करीबी और प्रमुख नेगोशिएटर ब्रेंडन लिंच भाग लेंगे। भारत की तरफ से वाणिज्य मंत्रालय में विशेष सचिव राजेश अग्रवाल भारतीय वार्ताकारों का नेतृत्व करेंगे। राजेश अग्रवाल ने बताया, “अमेरिकी टीम मंगलवार (16 सितंबर) को भारतीय प्रतिनिधियों से मुलाकात करेगी। ये छठे दौर की बातचीत नहीं बल्कि व्यापारिक चर्चा का हिस्सा है। उम्मीद है कि सकारात्मक और रचनात्मक बातचीत हो सकती है।”
ट्रेड वॉर की पृष्ठभूमि
मार्च 2025 से भारत और अमेरिका के बीच पांच दौर की वार्ता हो चुकी है। पहली बातचीत 26 से 29 मार्च के बीच हुई थी। इसके बाद अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने 2 अप्रैल को सभी देशों पर 10 प्रतिशत बेसलाइन टैरिफ लागू किया, जबकि भारत पर कुल मिलाकर 26 प्रतिशत टैरिफ लगा दिया गया। 21 अप्रैल को प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिकी सांसद जेडी वेंस से मुलाकात की थी। इसके बाद 14 जुलाई से 18 जुलाई तक पांचवें दौर की बातचीत हुई। लेकिन टैरिफ बढ़ोतरी के चलते छठे दौर की चर्चा स्थगित कर दी गई थी।
ट्रंप ने भारत पर लगाए 50% टैरिफ
पहले से ही भारत पर 25 प्रतिशत टैरिफ था। इसके बाद इसे और बढ़ाकर कुल 50 प्रतिशत कर दिया गया। इस कदम के बाद दोनों देशों के बीच दूरी और बढ़ गई थी।
फ्री ट्रेड एग्रीमेंट की संभावना
हालांकि अब व्यापारिक संबंध सुधार की उम्मीद जगी है। खबरों के मुताबिक, आज की बैठक में फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) और व्यापार में रुकावटों को दूर करने जैसे मुद्दों पर बातचीत हो सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर यह बैठक सकारात्मक रहे, तो दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंधों में सुधार की राह खुल सकती है।
विशेषज्ञों की राय
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि अमेरिका और भारत के बीच व्यापारिक टकराव को दूर करना जरूरी है, क्योंकि दोनों देशों के लिए यह आर्थिक और रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। लंबी अवधि में सकारात्मक वार्ता दोनों देशों के कारोबारियों और उपभोक्ताओं के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है। आज की मीटिंग न सिर्फ भारत-अमेरिका व्यापारिक रिश्तों के लिए अहम है, बल्कि भविष्य में आर्थिक सहयोग और रणनीतिक साझेदारी को भी मजबूती दे सकती है। अगर दोनों देश समझौते की दिशा में कदम बढ़ाते हैं, तो यह वैश्विक व्यापार पर भी सकारात्मक असर डाल सकता है।